रविवार, 31 मार्च 2019

मेरी तरह वो भी

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घर सुनसान हो जाता हैं 
जब बच्चें अपने पढने चले जाते हैं 

उनके जाते ही 
घर के कोने-अतरे में जाकर छिप जाती हैं 
चंचलता 

मेरी तरह वो भी उनके लौटने का इन्तजार करते हैं..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

एक आँसू की कीमत तुम क्या जानों !

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एक आँसू की कीमत तुम क्या जानों !

जब दर्द सम्हालें नही सम्हलता हैं
तो आ ही जाता हैं
आँसू
बाहर

बाहर
आकर भी
आंसू 
अगर दर्द को न समझा पाये
अपना
अपनों को
तो बेकार ही समझों
हैं अपनों की संवेदना !

कविता – रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र – गूगल से साभार

सबका हश्र बुरा होता हैं प्यार में

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तिनका जितना 
रखना 
ग़वारा न समझा 
उसने 
मुझे 
अपनी जिन्दगी में 

जानता हूँ 
सबका हश्र बुरा होता हैं 
प्यार में 
मेरा भी हुआ 
अब बात पते की लगने लगी हैं 

प्यार पर बनी फ़िल्में भी 
नायक और नायिका के 
बुरे हश्र की गाथा गाती नजर आती हैं 
ज्यादातर 

असल में 
प्यार उतना भी बुरा नहीं 
जितना हमने माना हैं 
समझा हैं 
जाना हैं 

लेकिन उसने ये मानकर बहुत बड़ी गलती की 
कि
प्यार हैं बस थोथी कल्पना 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


गुरुवार, 28 मार्च 2019

अब सबकुछ रफूचक्कर हो चुका हैं

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उसे 
मुझसे ही प्यार था 
भले न कह सकी वो 
मुझसे 

उसकी बातों में दम था 
मैंने सोचकर सारी बातें 
यही निष्कर्ष निकाला हैं 

मेरे बाद उसका क्या होंगा 
यही बात दिन-रात खटकती थी 

लेकिन 
अब सबकुछ रफूचक्कर हो चुका हैं 
जबसे निर्णय किया उसने 
न लौटने का 
मेरे जीवन में 
फिर से 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

बुधवार, 27 मार्च 2019

मन्दिर नही जाना पड़ेगा

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जब घर में दुनिया समा जाये 
तो वो घर, घर नही रह जाता 

जब छोटे बोलने लगे बेहद 
बुजुर्गो की बातें कौन सुने तब 

रुत होता हैं रार, तकरार का 
हर बखत लड़ने-झगड़ने से हल नही निकलता कोई 

'गुरुदेव 'की मानों तो 
घर में बना लो अगर शांति तो 
मन्दिर नही जाना पड़ेगा 
सुबहो-शाम 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 25 मार्च 2019

नदियाँ अगर बची-खुची हैं तो

नदियाँ अगर बची-खुची हैं तो 
शवदाह के लिए ..

नदियों के गर्भ में 
जो मछलियाँ, केकड़े, झिंगें ..
हैं 
वो हमारे पेट में आने से पहले तक ही 
सुरक्षित और आजाद हैं 

नदियों से हमारा नाता पुश्तैनी रहा हैं 
मन जबभी खिन्न होता था 
आकर इसके किनारों पर 
(हमारे पूर्वज को )
तात्विक बातों का भेद मिलता था 

अब विरले जगहों पर ही 
नांवे चलती हैं 
और शौकियां ही यात्राएं होने लगी हैं 
ज्यादातर 
इसपर 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


रविवार, 24 मार्च 2019

मुझे तुम्हारी बाहों में रहना था

मुझे तुम्हारी बाहों में रहना था 

मगर तुमने उचित ना समझा कभी 
बाहों में लटकाए 
पर्स की तरह 
मुझे संग-संग अपने 
घुमाना 

एक रात की बात हैं 
मैं तुम्हारी बाहों के घेरे में सोया था 
और अचानक से नींद टूट गयी 
तब जाना महज वो सपना था 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 23 मार्च 2019

बसंत

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दिन और अवधि के हिसाब से 
हो जाता हैं अंत बसंत का 
प्रत्येक वर्ष 

लेकिन सच पूछो तो 
बसंत छाया रहता हैं 
एक उम्मीद की तरह 
वर्षभर 
हमारे अंदर 

उसकी यादें 
उसकी बातें 
कहां बिसरा पाता हैं भूले से भी कोई 

आखिर 
कौन नही करना चाहता 
उसकी प्रसंशा करना 
और कौन नही चाहता 
उसके बासंती रंगों में रँगना

सच पूछो तो 
उसका जवाब नही 

और जिसका जवाब नही 
उसके बारे में 
क्या कहना !

हर शब्द कम पड़ जायेगा
आखिर में.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

एकदिन ये भी हैं

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सपने टूटें 
शीशे जैसे 
कि जुड़ना भी मुश्किल 

तुम रूठे 
पर्वत जैसे 
कि बात करना भी मुश्किल 

दूभर लगता हैं 
सांस लेना 
साँसों में 
नाइट्रोज हो जैसे समायी

एकदिन वो भी था 
जब हँस-हँसके 
तुम बातें किया करती थी 
मुझसे 
और एकदिन ये भी हैं 
कि शक्ल भी नही रास आ रहा तुमको मेरा 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

गुरुवार, 21 मार्च 2019

होरी आ गयों !

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जोगी जी !
होरी आ गयों 
मन भांग खा बौरा गयों 

तुम बजाओ ढोलक 
मैं बजाऊ झाल 

होरी आ गयों ऊधो !
माधो का हैं बस इन्तजार 

ब्रज में 
अबीर, गुलाल धुपछईयां सा छा गयों 
और गोपियाँ 
साँवरा रंग छोड़ 
सब रंग नहा गयी 

तुमहूँ नाँचो राधा प्यारी !
मीरा बैरन नाँची
श्याम खेलन अइहें होरी 
उगे सूरज हुए 
अभी 
पहर एक 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 



बुधवार, 20 मार्च 2019

हृदय में लगे चोट का उपचार नही

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हृदय में लगे चोट का उपचार नही 

सुबह-शाम टपकता रहता हैं 
खून 

वक्त भी सफल चिकित्सक नही होता 

यादों और बातों की घाटी में 
बहुरूपिये शिकारियों का राज हो जाता हैं 

तुमको देख ' ला बेली डेम संस मर्सी '
का सा आभास होता हैं 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मंगलवार, 19 मार्च 2019

सुबह खिली

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सुबह खिली 
फूल जैसी 

खुशबू से उसके 
तरो-ताजगी भरता 
हर प्राणी 

पंछी भौरे सा 
बहके-बहके से 
चहके हैं 
मेरे अटारी.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 18 मार्च 2019

और तुम

चिड़िया
चाँद 
और तुम 

चहकते
दहकते 
रहते हो 
हर बखत

फूल 
आकाश 
और तुम

महकते 
मचलते 
रहते हो 
सतत 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 17 मार्च 2019

आज से रास्ते जुदा हो जायेंगे

उसने मुड़कर भी न देखा 
मेरी तरफ 

मेरी तरफ 
देखता तो 
अपनापन झलकता 

आज से रास्ते जुदा हो जायेंगे 
कल से तुम्हे देखने हम यहाँ न आया करेंगे 

भूल जायेंगे 
कि हमने भी कभी 
किसीसे प्यार किया था 

और किसी पर 
आँख मुदकर विश्वास किया था 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 16 मार्च 2019

मिलते रहना यार !

वो 
जब-जब मुझसे मिलती हैं 
फूल जैसे खिलती हैं 

उसका खिलना देखकर 
मैं मन ही मन मुस्काता हूँ 

बातों के कम्पन से लगता हैं 
उसका हृदय स्पंदित होता हैं 
जोर-जोर से 

उसकी शर्म-हया से सराबोर हँसी
मुझसे कहती हैं हरबार
मिलते रहना यार !

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

विरह-वेदना

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चार दिन की चाँदनीं था मेरा प्यार 

फिर तो उसके आसमान में 
विरह की घटा ऐसे छायी कि
देह दुबली होती गई 
इश्क़ अविरल होता गया 

सैकड़ो कष्ट मानो हथौड़े के प्रहार समान 
गिरता रहा 
मुझपर 
और मैं  चुपचाप झेलता रहा 
हाँ, बस आह ! निकली होगी 
वो भी कभी कभार 

मुझपर 
जो बीती 
उसके वजह से 
वह अगर जानती भी  तो कहती -
कम हैं 

किसे फर्क पड़ता हैं 
जिस तन को लगे 
जिस मन को लगे 
अगर उसे नही 
तो किसे 
फर्क पड़ता हैं 
विरह-वेदना का !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


गुरुवार, 14 मार्च 2019

खाली समय में

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नितांत खाली समय में 
मुझे उसकी याद आयी 
जो भूल चुकी हैं ये कि
उसे भी किसीसे प्यार था 
इतना कि
सम्हालें नही सम्हलता था 
उसका नादान दिल !

वो कालेज के दिन थे 
माघ-पूस महीने की रातों में भी 
रतजगे जश्न की तरह होती थी 

खैर, तुम्हे मुझे भूले 
बरसों हुए 
लेकिन मुझे तुम्हे भुलाना आया ही नही आजतक 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

बुधवार, 13 मार्च 2019

बेटी कल विदा होंगी

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बेटी 
कल विदा होगी 

आज जश्न का माहौल हैं 
और ठुमक-ठुमककर नाँच रहा हैं 
बंदरवाला नाँच
हरकोई 

हर कोई 
इस बात से अनभिज्ञ हैं 
कल विदा होंगी 
बेटी 
ऐसे शहर को 
जिसे पर्यटक के तरह भी नही घुमा हैं 
उसने 

कि कैसे बंद करके रख ली हैं आँसू 
अपने पर्श में 
कोई खंगालना भी नही चाहता 
कि उसमे कितना दर्द हैं 
बेगाने शहर को रुखसत होने से पहले 
सिसकते हुए 

मैंने देखा था उसे 
खिड़की से बाहर तांकते हुए 
शून्य में 

आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी 
रिश्ते-नाते 
घर-परिवार 
यहाँतक कि जिन्दगी भी 

बेटी 
कल विदा होंगी
और हँसनेवाले भी रोयेंगे 
बेवजह 

जबकि वजह तो 
नई बहुरिया को तलाशनी होंगी.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मंगलवार, 12 मार्च 2019

ओ परी !

ओ परी !
बड़ी प्यारी लग रही हो आज !

आज फिजाओं में मस्ती हैं 

और सागर पर फेनिल लहरे 

मेरे हाथ में काश ! तुम्हारा हाथ होता !
दौड़ते-दौड़ते लगा देते डूबकी
इश्क़ के खारे पानी में 

और धूप में लेटकर 
कविता गुलजार की 
और अख्तर साहब की 
सुनाता 
तुम्हें 
यह एहसास तुमको हो जाता 
कही न कही 
मैं भी शायर बन चुका हूँ 
तुम्हारे इश्क़ में पड़कर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


सोमवार, 11 मार्च 2019

ये जग बैरी रे

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मेरा तेरा 
ये जग बैरी रे 

ये जग 
वही काला जहरीला साँप
जिसे कितना भी दूध पिला दो 
डसेगा 
एकदिन 
जरुर 

चलो 
हवाओ संग उड़ चले 
क्षितिज के उस पार 

सूना हैं 
वहाँ इस जहां के तरह मतलबपरस्ती नही 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 10 मार्च 2019

कब लौटोंगी

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तन की आग बूझें ना बूझें सही 
पर मन की आग बुझा दो 

कुछ इस तरह 
मुझें अपने सीने से लगा 
पलभर को सही सुला दो 

मैं बरसों से जाग रहा हूँ 
बेकरारी का धूल फांक रहा हूँ 

किसीरोज चैन से नही सोया 
नींद से जगा देते हैं 
बूरे सपने 

तेरे लौटने का रास्ता 
सदियों से ताक़ रहा हूँ 
कब लौटोंगी
क्या कभी नही !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शनिवार, 9 मार्च 2019

गरीबी बहुत बुरी चीज हैं..

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भठ्ठा के मजदूरों को देखकर 
वह बोली - 
गरीबी बहुत बुरी चीज हैं..

..भगवान जिसको देता हैं 
खूब देता हैं 
जिसको नही देता हैं 
कुछ नही देता हैं 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

प्रिये !

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प्रिये !
तुम्हे देखने को 
बहुत जी करता हैं 

तुम मीलों दूर क्यूँ चली गई हो 
क्या पास नही रह सकते हम !

वक्त के रवानी में 
बह गया 
वो सबकुछ 
जो बहुत प्यारा लगने लगा था हमें 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

गुरुवार, 7 मार्च 2019

फ़गुआ में इस साल

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उमंग के बुलबुलें उठ रहे हैं 
तन-मन में 

तन-मन 
रंगीन हुआ हैं 
बसंती रंगों को 
जबसे फेका हैं 
प्रकृति ने 
हमारे ऊपर 

चलो फ़गुआ में इस साल 
तुम्हारे घर के तरफ आते हैं 
देखकर 
दूर से 
एक-दुसरे को 
मन से मन को 
प्रणय रंग लगायेंगे 

पकवान जैसे 
गालो पर खिलेंगी मुस्कान 
अगर हम एक-दुसरे को दिख जाते हैं 

चलो अबकी साल 
असर राग का दिल में समेटकर 
यादों के टूटे आशियाँ को 
दुरुस्त करने में जुट जाये

हमने एक-दुसरे को सदियों तक चाहा, सराहा हैं 
आखिर 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


बुधवार, 6 मार्च 2019

जितनी बार देखू तुझे कम हैं

जितनी बार देखू 
तुझे 
कम हैं 

कम हैं
दिल को सुकून दिलवा पाना 

आदतन 
हुआ हैं ये 
कि मैं तुझसे प्रेम करने लगा हूँ 

तुमपर 
इस कदर 
मरने लगा हूँ 
कि हर समय, हर बखत
तुम्हें सिर्फ तुम्हें
देखने को 
जी चाहता हैं 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 मार्च 2019

रुके थे सरे राह

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रुके थे सरे राह 
चलते-चलते 
तुम्हारा मेरे पीछे होने का भरम पाले 

आखिर तक भरम बना रहा 
आखिर 
कठोर चट्टान की तरह मेरा विश्वास था तुमपर 

अब 
उमर बीत गयी 
मंजिल निकल गयी 
हाथ से 

और तुम भी गुजर गये हो 
मेरे बहुत पास से 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 4 मार्च 2019

बगैर तुम्हारे

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ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

बगैर तुम्हारे 
हवा में शोख़ी नही 
मदिरा मदहोश करती नही 

चुभती हैं बातें
बातें जो दिल से निकलती नहीं 

ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

गीत - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 3 मार्च 2019

तेरे बिना

मेरे बिना 
तुम तड़पती होंगी न 
बिन पानी के मछली की तरह 

मेरे बिना 
भटकती होंगी न तुम 
कस्तूरी को ढूढ़ते
हिरन की तरह 

तेरे बिना 
पेड़ से गिरा पत्ता हो गया हूँ 
समय की हवा चाहे जिस ओर ले जायें

तेरे बिना 
बिन मांझी के नाँव हो गयी हैं जिन्दगी 
चाहे जिधर पौरती जायें

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 2 मार्च 2019

प्रणय मेरा अभिशाप बना

प्रणय मेरा अभिशाप बना 

ना जी ही पाता हूँ 
ना मर ही पाता हूँ 
ठीक से 

लाख कोशिशों के बावजूद 
मैं इससे मुक्त भी नही हो पाया हूँ 

गोधूली बेला में 
वह पायल छनकाती 
रातरानी की ख़ुशबू उड़ाती
आ ही जाती हैं 
मेरे कमरे में 

उसकी शीतल स्पर्श के बावजूद 
आग धधकती रहती हैं 
तन-मन में 

खाबो-ख्यालो से ढका मेरा जीवन 
बस उसकी ही गोद में अंतिम सांस लेना चाहता हैं 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

उन्हें देखकर

उन्हें देखकर यूं लगा 
मुद्दत बाद करार मिल गया 

वादी में 
भुला-बिसरा नगमा मोहब्बत का गूंज गया 

मुझे याद हैं 
कबके मिले कबके बिछड़े हैं हम 

उनसे मिलते 
उम्र तमाम मिल गया 

रेखाचित्र व गजल - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...