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गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

सुबह जो आती है आशा की बरसात तुम !

तुमने मुझे अपनेपन के बाहों में जबसे भरा 
मैं गदगद हो 
सबसे बोलता-बतियाता फिरता हूँ.. 

कुछ ना कहा तुमने 
कुछ ना कहा मैंने 
फिरभी हम घुलने-मिलने लगे है 
प्रेम के अनदेखे, अनोखे रंगो में 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...