नदियाँ अगर बची-खुची हैं तो
शवदाह के लिए ..
नदियों के गर्भ में
जो मछलियाँ, केकड़े, झिंगें ..
हैं
वो हमारे पेट में आने से पहले तक ही
सुरक्षित और आजाद हैं
नदियों से हमारा नाता पुश्तैनी रहा हैं
मन जबभी खिन्न होता था
आकर इसके किनारों पर
(हमारे पूर्वज को )
तात्विक बातों का भेद मिलता था
अब विरले जगहों पर ही
नांवे चलती हैं
और शौकियां ही यात्राएं होने लगी हैं
ज्यादातर
इसपर
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार