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नितांत खाली समय में
मुझे उसकी याद आयी
जो भूल चुकी हैं ये कि
उसे भी किसीसे प्यार था
इतना कि
सम्हालें नही सम्हलता था
उसका नादान दिल !
वो कालेज के दिन थे
माघ-पूस महीने की रातों में भी
रतजगे जश्न की तरह होती थी
खैर, तुम्हे मुझे भूले
बरसों हुए
लेकिन मुझे तुम्हे भुलाना आया ही नही आजतक
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार