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सोमवार, 22 अप्रैल 2019

हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है

तुम्हें जान कहते थे हम अपनी

मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर 
भी 
बेघर हूँ 

सारा संसार अपनापन दिखाता था 
जब पहले-पहल हम मिले थे 

गीत नुसरत फतेह अली खान का 
और चित्र राजा रवि वर्मा का 
सुना 
देखा 
सराहा करते थे 

अब बात और है 
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो 
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है 
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...