तुम्हें जान कहते थे हम अपनी
मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर
भी
बेघर हूँ
सारा संसार अपनापन दिखाता था
जब पहले-पहल हम मिले थे
गीत नुसरत फतेह अली खान का
और चित्र राजा रवि वर्मा का
सुना
देखा
सराहा करते थे
अब बात और है
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."
चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज