मेरा उसका कुछ-कुछ चल रहा था
मान लो प्यार-मोहब्बत जैसा
हम निगाहों से बाते करते थे
और बातो से मुलाकाते
हम एक-दुसरे के बहुत ही करीब थे
पर ना जाने किसकी नजर लगी
हम एकायक दूर होने लगे
एकदिन मुड़कर पीछे देखे
गौर से उसे
लगा-
मैंने तो खो दिया है उसे
वो नायाब थी
और बहुत कुछ हो गई थी मेरी
मान लो जिन्दगी की पर्याय बन चुकी
थी मेरी
और मैंने गौर किया
वो बदल चुकी है
इतना
जितना मौसम बदल जाता है..
वो किसी गैर नही
मेरे अपने के तरफ मुड़ चुकी थी
या यु कहे वो जुड़ना चाहती थी उससे
मैंने भी मन बना लिया था कि
उसे रोकूंगा नही
जुड़ने से
पर हरबार मुझे देखकर जाती थी वो
मेरे अपने के पास
सो एक टिस सी हो ही जाती थी सीने
में
और
धीरे-धीरे मुझे जलन भी होने लगा था
बेतहाशा
बेहिसाब
और मै किसीसे कुछ कह भी नही सकता था
ना उससे
ना मेरे अपने से
मेरा अपना
फिरभी जानता था
मै क्यू ऐसा होता जा रहा हू
मै खुश रहू
खुश दिखू
इस कोशिश में
उसने उससे बैर लिया
या यु कहे उसने उससे मुँह फेर लिया
फिर तो वही होना था
जो हमेशा से होता आया है
आप सोच रहे होंगे क्या !
ना प्यार रहा
मेरे हक में
ना यार रहा
मेरा सच्चा !
उसे बुरा बना दी
पलभर में
फिर क्या हुआ
तीन बन्दर
बुरा मत कहो
बुरा मत सुनो
बुरा मत देखो वाले
भूल गये
गांधीजी का यह वाक्य.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज