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मंगलवार, 27 नवंबर 2018

मानांकि इश्क हमारा मूक है



हम शिकवा करे
कि शिकायत करे

है जब तू रूबरू
भूलके सब शिकवे-गिले
क्यों ना हम प्यार करे !

ये भी मुमकिन है
हम जता ना पाये वो प्यार
जो बरसों पहले आग जैसे धधकता था

ये भी मुमकिन है
राख की ढेर में
कोई तो चिंगारी दबी होंगी
जो बुझी नही होंगी अभीभी.

अभीभी
कुछ तो होंगा हमारे दरम्यान
मानाकि
इश्क हमारा मूक हो जिया है
बरसों तक.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...