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रविवार, 3 मार्च 2019

तेरे बिना

मेरे बिना 
तुम तड़पती होंगी न 
बिन पानी के मछली की तरह 

मेरे बिना 
भटकती होंगी न तुम 
कस्तूरी को ढूढ़ते
हिरन की तरह 

तेरे बिना 
पेड़ से गिरा पत्ता हो गया हूँ 
समय की हवा चाहे जिस ओर ले जायें

तेरे बिना 
बिन मांझी के नाँव हो गयी हैं जिन्दगी 
चाहे जिधर पौरती जायें

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...