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रविवार, 9 सितंबर 2018

तो..?

Art by Ravindra Bhardvaj

1.

तु जब मिला
हवा का एक झोंका ऊठा था
दिल के अंदर

आसमान को छू देनेवाली एक लहर ऊठी थी
उसी दिल के समंदर से

तु बेबाक थी तब
मेरी किसीभी बात को बुरा नही मानती थी

तब, मुझपे हक जतलाती थी
मेरे साथ होने मे गौरवान्वित महसुस करती थी।



2.
मै संकोची बना फिरता था उसवक्त
क्योकि भय और डर का अंधेरा हर तरफ से
घेरता जा रहा था मुझे

तुम्हारे चले जाने के बाद
मेरा क्या होगा
क्या मै जी पाउंगा वैसे जैसे जी रहा था..



3.
अच्छा चलो तुम्ही बताओ
तुम क्या कहती
जब मै कहता ये सब..

तुम थोड़ी दुखी हो जाती
और कहती- मै नही जाऊंगी कभी
तुमको छोडकर..


4.
लेकिन अभी तुम चली गई हो
बिना कुछ कहे..
..सो तो ठिक है..
पर कहके जाती- मै नही जाऊंगी
तुमको छोडकर..

तो..?
कविता व रेखाचित्र - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...