सोमवार, 31 दिसंबर 2018

वो बातें

Art by Ravindra Bhardvaj
सफर
चंद रातों का

रातें 
बातों में कट गई

अब कटीली झाड़ियो सी चुभती हैं 
वो बातें 
जिन्हें जीना-मरना था हमारे साथ-साथ.
- रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 30 दिसंबर 2018

गरीब सबसे पहले नंगा हो जाता है

Art by Ravindra Bhardvaj
बच्चे 
नंगे ही 
भले-चंगे लगते है 
गरीब के 

सूट-बूट में ही 
अच्छे लगते है 
अमीर भी 

अमीर 
आखिर,
सबको नंगा करना चाहते है 

और गरीब 
सबसे पहले नंगा हो जाता है 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

कभी यहाँ बरसते हो, कभी वहाँ


Art by Ravindra Bhardvaj
सावन 
बादर 
नैना 

रूप 
धुप 
चैना 

कभी यहाँ बरसते हो 
कभी वहाँ

जहाँ 
प्यासा है 
वहाँ क्यू नही 

एक उत्तर.. 
प्रश्न कई
ऊठ रहे है पानी के बुलबुले सा 
मन में 

अन्तस् में 
पीड़ा है 
घना 

पीड़ा की बीड़ा
ऊठाये 
कबतक कौन ?

वो भी मौन रहकर 
- रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

चलता चल..!

Art by Ravindra Bhardvaj
तू अपनी लौ में 
जलता चल !

मेरे-तेरे भाग्य का फैसला 

करेगा वो ऊपर वाला ही !

तू अपनी ही मति से 

नदी की गति  सी बहा कर !

ठहरना 
खरगोश को पड़ता है 
कछुआ सा चाल 
चलता चल..!

सूरज 

सुबह का इन्तजार करता है 
चाँद 
रात का 

इन्तजार करता रह 

तुम्हारे उदय में अभी समय शेष है 
चल 
अपने गन्तव्य पर 
चलता चल..!
- रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

फिर क्यू नही मिलते हम

Art by Ravindra Bhardvaj
मिले भी तो कुछ इस तरह 
मिलना बिछड़ना जैसे लगा 

गले मिलने जैसा कुछ नही था 
पर बिछड़ना कतई गवारा न हुआ

मैं सागर 
तुम नदी 
यही कहती थी न तुम

फिर क्यू नही मिलते हम 
जब एक-दुसरे में विलीन होना है हमको
- रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

नामुमकिन था

Art by Ravindra Bhardvaj
ट्रेन का रुकना 
नामुमकिन था

नामुमकिन था
वैसे ही
तुम्हें भी रोक पाना
- रवीन्द्र भारद्वाज


मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

चाँद उतर रहा है

Art by Ravindra Bhardvaj 


चाँद उतर रहा है
चाँदनी की सीढ़ी लगाकर
मेरे अंगना में।

मैं खोई खोई सी रहती हू
आजकल कुछ ज्यादा ही
शायद इसीलिये आया है मुझे अपना पता ठिकाना बताने।
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

कम-स-कम

Art by Ravindra Bhardvaj
साथी ! 
मानांकि 
हम मिल नही सकते 

एक-दुसरे के 
लबो को 
चूम नही सकते 

पर 
गिले-शिकवे 
मिटा सकते है 
बात करके 

ऐसी चुप्पी क्यू साधना 
तिल-तिल के 
लील जाये
जो 
तुमको 
हमको,
कम-स-कम 
हाय..
गुडमार्निंग 
कैसे हो..
पूछ लिया करो..
यारा !
- रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 23 दिसंबर 2018

वो मुस्कान

Art by Ravindra Bhardvaj
पहली मिलन पर 
खिली चेहरे पर तुम्हारे मुस्कान 
आज भी महकती है 
मानांकि वो फूल नही 
फिरभी 
महकती है..

मेरी आत्मा तक में 
समाई है 
उसकी खुश्बू 

दूसरा मिलन 
अभी हुआ नही 
वरना 
वो मुस्कान 
बिखर जाती 
गमगीन हुए हवा में.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

हवा और समय

Art by Ravindra Bhardvaj
जब हवा चलती है 
तुम्हारे साथ होने का एहसास होता है 

जब हवा रुक जाती है 
तुम्हारे गुम हो जाने का एहसास होता है 

जब-जब गुजरता हूँ 
गाँव के इकलौते पुराने पीपल के पेड़ के नीचे से 
तुम्हारे गुनगुनाने का आवाज़ सुनता हूँ 

हवा 
और समय 
तुम्हारे मीत है 

जब चाहो भेज देती हो 
जब चाहो बुला लेती हो.
- रवीन्द्र भारद्वाज 


शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

उसकी प्रतीक्षा में

Art by Ravindra Bhardvaj
ओढ़नी
लाल रंग की 
सुबह की 

ओढ़नी
सफेद रंग की 
दोपहर की 

ओढ़नी
काली 
सांझ की 

सुबह से 
दोपहर 

दोपहर से 
शाम हो गई

और मैं उसकी प्रतीक्षा में 
प्रेमी से 
कवि बनता जा रहा हूँ.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

ये दिल ! क्यू प्यार करे !

Art by Ravindra Bhardvaj
बेपरवाह प्यार के सहारे 
कोई कबतक जीए

मरना तो सबको हैं एकदिन 
जीते जी 
फिर क्यू मरे !

उस प्यार में 
दाग है 
जगह-जगह.. 

फिरभी ये दिल !
क्यू प्यार करे !
- रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

मैं नही चाहता


Art by Ravindra Bhardvaj
वो मेरे पास आई 
शर्माते हुए 

मुझसे बात करने की कोशिश की 
और कामयाब भी रही 

उसके लिए बहुत मुश्किल है 
मुझसे प्रेम करना 

क्योंकि
मैं नही चाहता 
प्रणय-संबंध उससे रखना.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब

अब देखकर तुमको 
यकीन नही होता 
कि तुम वही हो 
जो मुझपे मरती थी कभी 

गालो पर 
हल्का सा गढ्ढा 
बनता था 
उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब 

हवा में उड़-उड़ जाती थी 
रेशम की वो गुलाबी ओढ़नी
जिसे महीने में दो-एक बार लगाती थी तुम 

जिस किसीदिन 
मैं तुम्हारा पीछा करता 
मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए 
साईकिल का पैन्डील तेज मारती 
तब तुम सातवे आसमान पर पहुँचना चाहती थी न !
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

ठहर जाओ

मेरी नजर में, तू है 
तेरी नजर में, मैं 

अब जाना कहां..
भूलता जा रहा हूँ मैं यह 

शाम ढलने को है 
डर लग रहा है 
फिरसे तन्हा होनेवाला हूँ मैं.

एकबारगी 
ठहर जाओ 
मेरे घर 
घर का कोना-कोना 
हँसने लगेगा 
चल चलो न अपने घर 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 16 दिसंबर 2018

मुस्कुराओ कि..

Art by Ravindra Bhardvaj
मुस्कुराओ कि
हर गम बोझ सा उतर जाये

रुत बसंत का 
फिरसे आ जाये

लम्बी जुदाई के बाद 
वस्ल की आरजू काश ! आज ही पूरी हो जाये..


सुनाओ कि
झिझक न लगे 
कोई बात कहने में..

रोयेंगे हम आज साथ-साथ 
बहाना निकल ही आयेगा 
कोई न कोई 
अफ़सोस का

ख़ुशी के आंसू भी बहेंगे 
जीवन से गहरे असंतोष के बाद 
तुमसे फिरसे मिलने पर. 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

तू अबभी है मेरे जेहन में

धूप में 
बिखरे बाल 

हाथ में 
रुमाल 

तू अबभी मेरे जेहन में है 
प्रेयसी सरीखी 

लेकिन मैं नही हू 
तुम्हारे नजर में 
एक अच्छा, सच्चा प्रेमी.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

वो बहुत दूर निकल चुकी है मुझसे

ऐ रात ! 
तू छिपा ले 
मेरी हरेक कुटिलता.

ऐ दिन !

दिखा दे तू सबको आईना
मेरे अथक परिश्रम का.

ऐ समय !

अब ना रुक 
वो बहुत दूर निकल चुकी है मुझसे.

ऐ कविता !

उसे मुक्त कर
जो बसा रहता है 
मुझसे 
तुममे.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

"Now a Day"

Art by Ravindra Bhardvaj
I supposed 
You are mine



But now a day 

I see
Like that 
There is no sign.
Sketch and Poetry - Ravindra Bhardvaj 

शिशिर सिरहाने तक

Art by Ravindra Bhardvaj
शिशिर सिरहाने तक आ पहुँचा है..

सूरज भी 

अब देर से जगता है 

'सो ले 

कुछ देर और..'
कभी मैं 
तो कभी वो कहे जा रही है-

जॉन डन की कविता 'द सन राइजिंग'

तैरने लगी है 
शब्दों की मछलियाँ बनकर 
पुरे कमरे में.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज  

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

समझ में नही आया..

Art by Ravindra Bhardvaj
मेरा अस्त 
जबरन किया तुमने.


तुम्हारे अलावा था ही कौन 

मुझे समझनेवाला.


मेरा प्यार कि तेरा प्यार 

समझ में नही आया.. 
एक तरफा था 
कि दो तरफा. 
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

फूलों का कांटो का संग है

Art by Ravindra Bhardvaj 
फूलों का कांटो का संग है 


मेरे सबसे अजीज दुश्मन !

मेरे गम से 
क्या तेरा गम कम है !


तू रोक दे 

कोड़े बरसाना 
मुझपर 
दशरथ मांझी का सा फर्ज है !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

एक नदी और दो किनारा


एक नदी 

और दो किनारा 


दूर 

बड़ी दूर 
है मंजिल 
नदी की 

लेकिन 
बिना किनारे के 
उसकी बहाव नामुमकिन है !


फिरभी 

बहे जा रही है.. वो 
सिकुड़कर, ठिठुरकर
दोनों ही किनारों से 


दोनों ही किनारे 

सूखे है, प्यासे है 
पथरा सी गई है उनकी आँखे 
वस्ल की बरसात की राह तकते-तकते.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 9 दिसंबर 2018

रुक जाओ ना

मैंने तो ये सोचा ही नही था 
तुम आई हो इसबार भी चली जाओगी 

होठो पर हँसी रखकर मेरे 
जेहन में लिखकर अल्फाज़ प्यार के 
कल चली जाओगी न 

ना जाना 
मुझे छोड़कर तन्हा 
तन्हा सफर नही कटता
यादें कटती है 

होठो पर 
होठ धर दो अपने 
बाहों में सिमट जाओ 
यू कि पूरी दुनिया लगु मैं तेरी 

तू मुझपे इतना क्यू बिफरती है 
मैं क्या कोई अजनबी हू 
नही न 
तब फिर 
रुक जाओ ना 
इस एक जनम के लिए 

प्लीज..
अगले जनम का मैं नही जानता.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

गूंज रही है शहनाई..

Art by Ravindra Bhardvaj 
गूंज रही है शहनाई 
हवाओं में 

बचपन के मीत,
प्रीत 
बिछुड़ेंगे कल 

कल के बाद 
पलको पर रह जायेंगी याद भर 
घर-आंगन-मुंडेर की..

और आँखों में आँसू होंगे 
ख़ुशी के कि गम के 
ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल होगा.. 
कल के बाद.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज




गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

अच्छा लगता है

जाने से पहले 
हाथ हिलाना हवा में 
बाय-बाय करने को मुझे 
अच्छा लगता है 

अच्छा लगता है 
तुम्हारा चेहरा देखकर 
विदा लेना.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

सिर्फ मेरे लिए

तुम महकती थी 
जब गुलाब थी 

तुम उड़ती थी 
जब परवाज थी 

तुम चलती थी 
जब नदी थी 


तुम ठहरी हो अब 
धरती हो 

बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया 
तुम नही लड़ सकती अब हरकिसीसे 
सिर्फ मेरे लिए.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

बहुत याद आउंगा मैं

 

थोड़ा सा बरस जा 
पूरा भींग जाउंगा मैं 

थोड़ा सा तरस जा 
बहुत याद आउंगा मैं 

एकबार तो पाने की कोशिश कर पगली !
मुझे 
पूरा का पूरा मिलूंगा मैं तुम्हें.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

मुझे तुम नही मिले..

मुझे तुम नही मिलें 
ना तुम्हारा नसीब मिला 

तुम खो गये अचानक से 
मेरे साथ चलते-चलते 
पल दो पल का तो सफर रहा 

माना अजनबी चेहरे को पढना होता है बार-बार 
पर धोका होने या मिलने का 
तुम्हारे मन में हमेशा संशय बना रहा.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 2 दिसंबर 2018

तुम चुप थी..

तूने बेपरवाह रखा 
मुझे 
अपने गम से 

मेरी आँखे नम रही 
क्यूंकि तुम नही मिली कभी फुर्सत निकालके 

बड़ी आरज़ू थी कि
मिलते ही 
बताओगी
ना मिलने का सबब 

पर 
तुम चुप थी
ऐसे 
जैसे आकाश 

तुम पाषाण बन चुकी थी  
न जाने कौन तुम्हारी शोख-चंचलता को 
नष्ट कर दिया था 
हर सिरे से.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...