बिजली जब कड़कती हैं
बादल जब गरजता हैं
ऐसे आलम में
तुम्हारी बाहों के झूले पर
लेटकर
तुमसे बतियाँने को जी चाहता हैं
जी चाहता हैं
तुम्हारी बखान किये बगैर
मैं चुप ना होऊ
कभी
लाख चुप कराने पर भी तुम्हारे
वायलिन सा
रह-रहके बजता ये संगीत
आकाश और धरती की आबोहवा में
डरावना तो हैं तनिक पर
ध्यान से सुनने पर
बहुत मधुर लगने लगा हैं
सफेद रस्सियों सी
गिर रही हैं
बुँदे
देखो
वो आईना हैं हमारा !
मैं
तुम
और ये दुनिया
तीनो पर
कोई नियम, क़ानून लागू नही होते
हाल-फ़िलहाल
मैं सागर में कूद पडू
गोखागोर बनके
और बेसकिमती मोती लाऊ
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए
मैं अंतरिक्ष यान बन
पुरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना भूलकर
चाँद, तारे तोड़ लाऊ
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए
मैं हवा बन
पूरी पृथ्वी का सरपट सैर कर
तुम्हे बताऊ
ताजमहल सबसे प्यारा हैं !
- रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र गूगल से साभार