शाम ढलेएक दिया जलता है
उस दिए को
देखकरएक उम्मीद जगती है
उस दिए की लौह की तरह ही
मेरी प्रीत भी जलती होगीकहीं पर
- ~ 🖋️ रवीन्द्र भारद्वाज
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
शाम ढले
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सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
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बसंत को हरकोई देख रहा हैं बसंत हैं ही ऐसा मन को मोह लेनेवाला पलाश को हरकोई देख रहा हैं पलाश हैं ही ऐसा आत्...