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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

जरूरी था

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जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते 

राज जो दिल में दबा रखा था हमने 
जरूरी था उसका खुलना.. 

आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही 
जबसे तुम फिसल गये 
मेरे आस-पास से 
काई पर पड़ते ही पैर की तरह 

बेबस है 
लाचार हो गई हैं जिन्दगी 
किसी एक के ना मिलने के वजह से 
नाहक ही 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...