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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

मैं कोई आज से तन्हा थोड़े न हू !


नदी रुठ जाएंगी तो
गति टूट जाएंगी..

मैं कोई आज से तन्हा थोड़े न हू !
तुम छोड़ जाओगे तो
और तन्हा हो जायेगे
बस इतना ही।
रेखाचित्र व कविता - रवींद्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...