गाँव में डर समा गया हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गाँव में डर समा गया हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

गाँव में डर समा गया हैं

गूगल से साभार 
कही कोई बात तो हैं 
जो मुझे सोने नही देती ठीक से 

गाँव में 
डर समा गया हैं 

कोई किसीका हालचाल लेने से भी कतराता हैं 

जबसे हरखू का 
घर जला हैं 

भय की आग में जल रहा हैं हरकोई 

किसने जलाया 
क्यों जलाया 
ये हरखू को भी नही पता 

उड़ती-उड़ती बात सुनी हैं 
हरखू की बेटी शादी लायक हो चुकी हैं 
और वह दिन-रात एक करके 
एक-एक पैसा जोड़ रहा था 
उसे ब्याहने के लिए

लेकिन चौधरी का बेटा 
सूना हैं घूरता रहता हैं उसको बहुत 

शायद यही कारण पर्याप्त हैं 
उसका घर जल जाने के लिए|
- रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...