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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

पलाश को मैंने देखा नहीं अभीतक

पलाश को 
मैंने देखा नहीं अभीतक 
साक्षात् 

या हो सकता हैं 
देखा हूँगा 
पर ठीक से 
याद नहीं 
कब 

सूना हैं 
बसंत यही से कूदता हैं 
धरती पर 

पलाश का पुष्प 
लाल होता हैं 
खून से भी ज्यादा लाल 
पढ़ा हैं 
अनेकानेक कविताएँ 
पलाश को स्पर्श करती हुई 

पलाश 
कविजन को 
भाता हैं बहुत 
तभी तो देखते ही 
पलाश पर 
रच डालते हैं कविताएँ 
कि सदियों तक 
खिला रहे 
ठीक ऐसे ही 
जैसे अभी खिला होता हैं 

सूना हैं 
वर्ष में सिर्फ एकबार ही 
खिलता है पुष्प इसपर 
और जल्द ही 
विलुप्त भी हो जातें हैं 

जिसदिन 
मेरे भाग खुलेंगे 
देख ही लूंगा 
भाई पलाश तुमको

- रवीन्द्र भारद्वाज



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