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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

रोकर ही सुकून आता हो जैसे

वो मुझे रुलायेगी 
मैं उसे 

रोकर ही सुकून आता हो जैसे 

रिश्ते बनते हैं 
रिश्ते बिगड़ते है 
पर हरेक रिश्ते की बुनियाद 
जस की तस होती है 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...