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सपने टूटें
शीशे जैसे
कि जुड़ना भी मुश्किल
तुम रूठे
पर्वत जैसे
कि बात करना भी मुश्किल
दूभर लगता हैं
सांस लेना
साँसों में
नाइट्रोज हो जैसे समायी
एकदिन वो भी था
जब हँस-हँसके
तुम बातें किया करती थी
मुझसे
और एकदिन ये भी हैं
कि शक्ल भी नही रास आ रहा तुमको मेरा
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार