शनिवार, 8 जनवरी 2022

जी रहा हूँ

सघन जंगल की तन्हाई
समेटकर
अपनी बाहों में 
जी रहा हूँ 

कभी
उनसे भेंट होंगी 
और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे 
उनके पास 
यही सोचकर 
जी रहा हूँ 

जी रहा हूँ 
जीने का सलीका भूलकर 
यादों को कुरेदकर
आग की सी प्यास कण्ठ में रोककर

- रवीन्द्र भारद्वाज

11 टिप्‍पणियां:

  1. मित्र, क्या देवदास बनने की पूरी तैयारी कर ली है?

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  2. हृदय स्पर्शी सृजन, वेदना के स्वर।
    सुंदर सृजन।

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