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सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

मंजिल

Art by Ravindra Bhardvaj
कहाँ जाना है
कहाँ ठिकाना है
पता नहीं

पता होता तो
बताता जरुर..

क्योंकि जितनी जल्दी तुमको है
मेरी मंजिल तक पहुचने का
उससे कई गुना जल्दी मुझे है
मंजिल पर पहुचकर
तुमसे मिलने का
कविता व चित्र - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...