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रविवार, 10 फ़रवरी 2019

तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम हैं


तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम
हैं
लब पे तुम्हारा नाम
और हाथो के लकीरों में
फिरभी तुम नहीं.

तुम नही
समन्दर सरीखी
कि मेरी प्रेम की नईयां आप पार लग जाये

मैंने मदद मांगी थी
खुदा से
कि तुम्हे मुझसे मिलवा दे
पर उसने तिनके जितना भी मदद करना ऊचित न समझा.

मैं एकांकी नहीं
फिरभी एकांकीपन बड़ी शिद्दत से महसूसता हूँ
कि केवल तुम्ही तो नही मिलें
जबकि मिलने को आकुल रहती थी तुम मुझसे.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...