Art by Ravindra Bhardvaj |
एक
तुम्हे रुकना होता तो
रुक गये होते मेरे घर
आलमारी में
तहा के
करीने से
रख दिए होते अपना वस्त्र
अब देर हो चुकी है
और तुम नही लौटोगीं
मेरा खैर-खबर लेने
पेड़
पगडंडी
खेत
और तालाब
अपने गाँव से
निकाले हुए लगते हैं
ठीक मेरी तरह
दो
इस साल की विदाई हो रही है
आगामी वर्ष में
कुछ
-बहुत कुछ अच्छा होने का कयास लगा रहा
है हरकोई
हरकोई कही न कही खुश हैं
तिनके जितना
पर अपनी व्यथा तुमसे क्या कहू
जिसे सुनना था वो बुझना ही नही चाहता
फिरभी
आगामी वर्ष की शुभकामनाए !
आप सभी को
और तुमको भी प्रिये !
सहृदय..
-रवीन्द्र भारद्वाज