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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

एक नदी

            एक नदी
            जो मुझमे बहती थी 

        अब 
            मुझमे से मुड़कर 
            कही और बह निकली..
       कविता व रेखाचित्र - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...