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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

वो बहुत दूर निकल चुकी है मुझसे

ऐ रात ! 
तू छिपा ले 
मेरी हरेक कुटिलता.

ऐ दिन !

दिखा दे तू सबको आईना
मेरे अथक परिश्रम का.

ऐ समय !

अब ना रुक 
वो बहुत दूर निकल चुकी है मुझसे.

ऐ कविता !

उसे मुक्त कर
जो बसा रहता है 
मुझसे 
तुममे.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...