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रविवार, 28 अक्टूबर 2018

मेरी प्रेरणा !


हाथ छूटे
साथ छूटे
छुट गया घर-बार

तुम ना मिले
जग ना मिला
मिला ना सहानुभूति किसीका
भटकते रहे जीवन भर निरर्थक


जब कभी याद की बौछार आयी
गिले लेटे रहे
सारी रात

जबभी पुकारा किसी अजनबी ने
कही से
मै समझा वो तुम हो
मेरी प्रेरणा !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...