मेरा तेरा
ये जग बैरी रे
ये जग
वही काला जहरीला साँप
जिसे कितना भी दूध पिला दो
डसेगा
एकदिन
जरुर
चलो
हवाओ संग उड़ चले
क्षितिज के उस पार
सूना हैं
वहाँ इस जहां के तरह मतलबपरस्ती नही
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार