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शनिवार, 12 जनवरी 2019

तुम्हारे आने के बाद


तुम्हारे आने से पहले
घर कबाड़खाना था

अब वही घर
चमकता हैं
दमकता हैं
आशियाना लगता हैं  

कमरा आसमान जितना फैला हुआ लगता हैं

दीवारों पर टंगी
तुम्हारी तस्वीरे
मुस्काती रहती हैं सदा

तुम्हे देख-देख मैं भी मुस्का लेता हू
दिन में दो-चार बार.

रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज  



सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...