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हृदय में लगे चोट का उपचार नही
सुबह-शाम टपकता रहता हैं
खून
वक्त भी सफल चिकित्सक नही होता
यादों और बातों की घाटी में
बहुरूपिये शिकारियों का राज हो जाता हैं
तुमको देख ' ला बेली डेम संस मर्सी '
का सा आभास होता हैं
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार