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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

कसम से


कहीं से पुकार लो
व्याकुल है ये नैना
तेरी आवाज़ का चेहरा देखने को

फिर कहीं दिखो तो
पास बुला
'कैसे हो' पूछना ना भूलना

यादो से गजब का नाता है
अगर वो रुलायी अभी
तो अगले ही पल हसाँ देगी

कुछ ऐसे ही नाता
तुमसे है
कसम से
मैं नही जी पाया
तुमको खुदसे अलग करके

कसम से..
रेखाचित्र व कविता -रवींद्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...