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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

बेटी अब विदा ना होगी


बेटी 
अब विदा ना होगी 
ससुराल को 

ससुराल ही 
अब विदा करेगा 
श्मशान को 

बेटी 
अब विदा ना होगी 
मायके को 

मायका ही बन जायेगा 
सपना !
   रेखाचित्र व कविता  - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...