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बसंत को
हरकोई देख रहा हैं
बसंत हैं ही ऐसा
मन को मोह लेनेवाला
पलाश को
हरकोई देख रहा हैं
पलाश हैं ही ऐसा
आत्मा को लुभा देनेवाला
आम का बौर
हरकोई देख रहा हैं
बौर हैं ही ऐसा
पंछी क्या, मानव भी गुनगुनाने लगता हैं
फगुआ
सरसों को
हरकोई देख रहा हैं
सरसों का जोबन
हैं ही गदराया
मुझे कोई नही देख रहा
जबकि मैंने ही रंग भरे
आकार ढले
इनके
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार