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सोमवार, 29 अप्रैल 2019

वो प्यार के शुरुआती दिन थे

कभी बादलो पर पैर रखकर घूम आये थे 
पूरा आकाश 
दरअसल, वो प्यार के शुरुआती दिन थे 

कभी कड़वी यादें 
मीठी बेर सी लगी 
वो सबकुछ भूला के बस प्यार में गुम हो जाने के दिन थे 

जिगर पर चोट लगे थे तमाम 
बस दगा अपनों ने नही किया था 
यु कहे तो 
वही सबसे खूबसूरत शक्ल थी जिन्दगी की 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...