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रविवार, 7 अक्टूबर 2018

एक बगीचा

Art by Ravindra Bhardvaj




















ये टेड़ी-मेडी पगडंडी 

लहराते हुए फसलो के बीच से 
जाती है 
तेरे घर के आस-पास 


तेरे घर से थोड़ी दूर पर 
एक बगीचा है 


जब नही दिखती हो तुम 
खड़ी, अपनी खिड़की पर तो 
यहाँ आकर छहाँने लगते है..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज





सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...