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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

तू नदी थी !



तू नदी थी
साफ़-सुथरी
शीतल

पाप मेरे सारे
धूल गये
तुममे


क्या तुममे अबभी मेरा अंश है कोई
मै पूछता रहता हू
कतारों में खड़े पेड़ो और पौधे से.

सब
चुप है..

क्यू ?

आखिर क्यू !
कोई कुछ नही बोलता
तुम्हारे बारे में
कि तुम कहाँ रहती हो..
कैसी हो..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...