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शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

मैं बट गई


मैं बट गई
दो हिस्सों में

एक हिस्से में, मेरा शरीर हैं
दुसरे में, मेरा हृदय

हृदय, उसके पास हैं जिसके पास हृदय नही
और शरीर, उसके पास हैं जिसके पास भी हृदय नही.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...