जब मैं अवसाद में होता हूँ
कविता सृजता हूँ
तुम्हे मालूम पडूंगा मैं भला-चंगा
पर मेरी कविताएँ
बांचके
सोचना-
कैसे जी लेता हूँ मैं
तुम्हे खोकर
तुम्हारे लिए रोकर
बेवजह
अवसाद
वो खाई
जिसमे बलिष्ठ से बलिष्ठ ख्वाहिशों
को
दम तोड़ देना हैं यु ही
अवसाद को सहकर जीना बहुत हिम्मत का
काम होता हैं मेरे दोस्त !
अवसाद
गले तक कसी रस्सी हैं
जो जबरन आत्महत्या करवाना चाहता हैं
मेरा या फिर तुम्हारा
फिरभी
मेरी कविताएँ
तुम्हे पराजित करती
मुझे जीना का सलीका बताती, सिखाती
चलती हैं मेरे साथ
- रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र गूगल से साभार