जब मैं अवसाद में होता हूँ
कविता सृजता हूँ
तुम्हे मालूम पडूंगा मैं भला-चंगा
पर मेरी कविताएँ
बांचके
सोचना-
कैसे जी लेता हूँ मैं
तुम्हे खोकर
तुम्हारे लिए रोकर
बेवजह
अवसाद
वो खाई
जिसमे बलिष्ठ से बलिष्ठ ख्वाहिशों
को
दम तोड़ देना हैं यु ही
अवसाद को सहकर जीना बहुत हिम्मत का
काम होता हैं मेरे दोस्त !
अवसाद
गले तक कसी रस्सी हैं
जो जबरन आत्महत्या करवाना चाहता हैं
मेरा या फिर तुम्हारा
फिरभी
मेरी कविताएँ
तुम्हे पराजित करती
मुझे जीना का सलीका बताती, सिखाती
चलती हैं मेरे साथ
- रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र गूगल से साभार
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार.......आदरणीय
हटाएंवाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार ......आदरणीया
हटाएंवाह !!बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
जी सादर आभार .........आपका
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी सादर आभार...."पाँच लिंको के आनंद में" इस रचना को साझा करने के लिए।
हटाएंअवसाद को सहकर जीना बहुत हिम्मत का काम होता हैं मेरे दोस्त !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जी सहृदय आभार.....आपका
हटाएंबहुत गहरी मर्मस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
जी बहुत-बहुत आभार...........आदरणीया
हटाएं