प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
बुधवार, 16 दिसंबर 2020
मुझे खुदपर तरस आता है
गुरुवार, 3 दिसंबर 2020
मान लो !
दो आदमी और एक औरत थी
दोनो आदमी
उसी एक औरत पर आकर्षित थे
आकर्षण के विषय में
जितना मुझे ज्ञान है
बताता हूँ
- कुशलता और काबिलियत के अनुसार
उसने पहले को रिझाया
और दूसरे को जलन था
कि वह पहले पर ही क्यों मरती है
सारे साधन व तरकीब दूसरे ने लगाया
अन्ततः, दूसरा उस औरत को पाया
उतना ही खुशमिजाज जितना पहले को मिली थी
कभी
हकीकत में , मैं नही जान पाया आजतक
कि वह पहले को मिली
या दूसरे को
समर्पित होकर।
मान लो
यह एक झूठी कहानी हो सकती है
या फिर हकीकत भी
मैं ठीक-ठीक नही बता पाउँगा।
- रवीन्द्र भारद्वाज
सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
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कभी शिकायत थी तुमसे ऐ जिंदगी ! अब नही है... जीने का जुनून था कुछ कर गुजरना खून में था तकलीफ भी कम तकलीफ देती थी तब। अब अपने पराये को ताक ...
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मुझे बादलों के उस पार जाना है तुम चलोगी क्या ! साथ मेरे मुझे वहाँ आशियाँ बनाना है हाथ बटाओगी क्या ! मेरा वहाँ.. अगर चलती तो साथ मिलकर ब...
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