बुधवार, 16 दिसंबर 2020

मुझे खुदपर तरस आता है

मुझसे पूछो 
कैसा हूँ 

गैर तो गैर ठहरे 
उन्हें क्यों बताऊ अपनी हालत 

मुझे खुदपर तरस आता है
कभी-कभी
कि मैं खिंचा ही क्यों गया 
अवचेतन होकर
तुम्हारे प्रेम के गहरे लाल समंदर मे...

- रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

मान लो !


 मान लो 

दो आदमी और एक औरत थी 


दोनो आदमी 

उसी एक औरत पर आकर्षित थे 


आकर्षण के विषय में

जितना मुझे ज्ञान है 

बताता हूँ

- कुशलता और काबिलियत के अनुसार 

उसने पहले को रिझाया

और दूसरे को जलन था 

कि वह पहले पर ही क्यों मरती है


सारे साधन व तरकीब दूसरे ने लगाया 

अन्ततः, दूसरा उस औरत को पाया 

उतना ही खुशमिजाज जितना पहले को मिली थी 

कभी


हकीकत में , मैं नही जान पाया आजतक 

कि वह पहले को मिली

या दूसरे को 

समर्पित होकर।


मान लो 

यह एक झूठी कहानी हो सकती है 

या फिर हकीकत भी 

मैं ठीक-ठीक नही बता पाउँगा।


- रवीन्द्र भारद्वाज


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...