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रविवार, 16 दिसंबर 2018

मुस्कुराओ कि..

Art by Ravindra Bhardvaj
मुस्कुराओ कि
हर गम बोझ सा उतर जाये

रुत बसंत का 
फिरसे आ जाये

लम्बी जुदाई के बाद 
वस्ल की आरजू काश ! आज ही पूरी हो जाये..


सुनाओ कि
झिझक न लगे 
कोई बात कहने में..

रोयेंगे हम आज साथ-साथ 
बहाना निकल ही आयेगा 
कोई न कोई 
अफ़सोस का

ख़ुशी के आंसू भी बहेंगे 
जीवन से गहरे असंतोष के बाद 
तुमसे फिरसे मिलने पर. 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...