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सोमवार, 14 जनवरी 2019

वो वक्त चुप हैं

हवा में तैरती हैं 
गूंज तुम्हारी 

तुम्हारे दुपट्टे के झुटपुटे 
में 
थी 
जिन्दगी हमारी 

किसने किया 
हमें तुमसे अलग 
चलो 
पूछें 
आज 
उस वक्त की क्या थी मजबूरी 

वो वक्त 
चुप हैं
मौन के तरह 

लेकिन 
मौन की प्रकृति 
अशांत होती हैं सदा.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...