जीने दो मुझे
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ
खाने को भोजन नहीं मिलता
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ
आसमान का छत
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है
गर्मीवाली रातों में
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें
तन , मन को काट, बाँट देती है
खुली हवा में
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार