शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

एकबार

तुझसे गले मिलना था 
कम से कम 
एकबार 

एकबार 
एक-दुसरे के छाती से लगकर 
सुनना था 
धक-धक
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

ये दिल !

जो  गुजरा 
वो गुजरा नही .

आजभी 
उसका ख्याल 
क्यूं बुनता है ये दिल !

ये दिल !
सम्भल जा !
अब आँखों में आसू नही बचा 
एकभी .
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 28 नवंबर 2018

सुबह का इंतजार पूरा हुआ


आज सुबह का इंतजार
पूरा हुआ

होठो पे हँसी है
आँखों में चमक

पत्तो पर
ओस की जवानी है
मोती सदृश्य

मुर्गे का बाग़ है
गूंजता
अभीभी
माहौल में

छत पर
एक कबूतर है

उस छत पर दो
बैठे है

तुम भी आज क्या खूब निखरी-निखरी दिख रही हो यार !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

मानांकि इश्क हमारा मूक है



हम शिकवा करे
कि शिकायत करे

है जब तू रूबरू
भूलके सब शिकवे-गिले
क्यों ना हम प्यार करे !

ये भी मुमकिन है
हम जता ना पाये वो प्यार
जो बरसों पहले आग जैसे धधकता था

ये भी मुमकिन है
राख की ढेर में
कोई तो चिंगारी दबी होंगी
जो बुझी नही होंगी अभीभी.

अभीभी
कुछ तो होंगा हमारे दरम्यान
मानाकि
इश्क हमारा मूक हो जिया है
बरसों तक.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 26 नवंबर 2018

हम हमारे रहे


आज फिर
तुम्हारा बाल
खुला था

जुल्फों में
सघन जंगल का
अंधेरा था

मैं
उनमे ही
खुदको खो देना चाहता था

कुछ इस तरह से
कि मैं किसीका खैर-खबर ना लू
ना तुम लो

कि हम
हमारे रहे
हमेशा बस हम हमारे रहे.

रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज



शनिवार, 24 नवंबर 2018

बहुत हद तक मुमकिन है..


तुम्हारे कदमों के निशान अब नही यहाँ

यही तुम चले थे
थिरकें थे
लगभग नाँचे भी थे

अब यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है
दिल में बेचैनी सी रहती है

शाम फ़ीका-फ़ीका लगता है
तुम्हारे बिना

रातें
बंजर हो गई है

बहुत हद तक मुमकिन है
तुम मुझे भूल गई होंगी  
पर भूलने की क्या वजह रही होंगी
सोचता रहता हू..

मैंने तो ये भी सोच लिया था
मैं तुम्हारे लायक नही..
क्या यह सच है जी !

तुम मुझे धक्का दे दीए न 
स्वर्ग से
नर्क में.

रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज



शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

नदी को कब रोंका था मैंने

बदल जाना इतना तेरा 
जितना इंसान नही बदलता

नदी को कब रोका था मैंने
वह बहती ही रही
अनवरत

पर मुझे अपने अंदर नही रहने दी
हालांकि शीतलता, निर्मलता बहुत गहरे तक थी
उसमे.

एक भूल या गलती थी मेरी कि
मेरे आस-पास भी नही भटकती दिखती
तुम्हारी रूह.

हालांकि
मुझसे जबरन लिपटी रही थी
सदियों तक
तुम्हारी रूह.

रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज




बुधवार, 21 नवंबर 2018

वो मसीहा था


जो तुम्हे छोड़ दिया 
वो मसीहा था 

जो तुम्हारे साथ है 
वो नसीब है 

जो तुम्हारे करीब है 
वो गरीब है 

जो तुम्हारे साथ-साथ चलता है 
वो एहसास है 

वो कुछ नही है 
जिसे बहुत कुछ मान लिया है तुमने.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

तीन बन्दर


मेरा उसका कुछ-कुछ चल रहा था
मान लो प्यार-मोहब्बत जैसा
हम निगाहों से बाते करते थे
और बातो से मुलाकाते

हम एक-दुसरे के बहुत ही करीब थे
पर ना जाने किसकी नजर लगी
हम एकायक दूर होने लगे

एकदिन मुड़कर पीछे देखे
गौर से उसे
लगा-
मैंने तो खो दिया है उसे

वो नायाब थी
और बहुत कुछ हो गई थी मेरी
मान लो जिन्दगी की पर्याय बन चुकी थी मेरी

और मैंने गौर किया
वो बदल चुकी है
इतना
जितना मौसम बदल जाता है..

वो किसी गैर नही
मेरे अपने के तरफ मुड़ चुकी थी
या यु कहे वो जुड़ना चाहती थी उससे

मैंने भी मन बना लिया था कि
उसे रोकूंगा नही
जुड़ने से

पर हरबार मुझे देखकर जाती थी वो
मेरे अपने के पास
सो एक टिस सी हो ही जाती थी सीने में

और
धीरे-धीरे मुझे जलन भी होने लगा था
बेतहाशा
बेहिसाब

और मै किसीसे कुछ कह भी नही सकता था
ना उससे
ना मेरे अपने से

मेरा अपना
फिरभी जानता था
मै क्यू ऐसा होता जा रहा हू

मै खुश रहू
खुश दिखू
इस कोशिश में
उसने उससे बैर लिया
या यु कहे उसने उससे मुँह फेर लिया

फिर तो वही होना था
जो हमेशा से होता आया है
आप सोच रहे होंगे क्या !

ना प्यार रहा
मेरे हक में
ना यार रहा
मेरा सच्चा !

उसे बुरा बना दी
पलभर में

फिर क्या हुआ
तीन बन्दर
बुरा मत कहो
बुरा मत सुनो
बुरा मत देखो वाले

भूल गये
गांधीजी का यह वाक्य.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


सोमवार, 19 नवंबर 2018

काश !


काश !
रातें तेरी
मेरी बाहों में कटती

मैं जुल्फों में
ऊँगली फेरता तेरे

माथे को चूमता
प्यार जताने को तेरे

तुम्हे कविता सुनाता
सुनकर
काश ! तुमको प्यार आता बहुत मुझपर
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 18 नवंबर 2018

हम साथ है तुम्हारे !


यार !
हम साथ है 
तुम्हारे 

चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यू ना हो 
सामने 

हम साथ-साथ लड़ेंगे 
और आगे बढ़ेगे.. 

लोगो के लिए ना सही 
पर एक-दुसरे के लिए 
हम बढ़ते चलेंगे 
मुश्किलों और मुसीबतों के आंधी को चिरते हुए..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

कसम से


कहीं से पुकार लो
व्याकुल है ये नैना
तेरी आवाज़ का चेहरा देखने को

फिर कहीं दिखो तो
पास बुला
'कैसे हो' पूछना ना भूलना

यादो से गजब का नाता है
अगर वो रुलायी अभी
तो अगले ही पल हसाँ देगी

कुछ ऐसे ही नाता
तुमसे है
कसम से
मैं नही जी पाया
तुमको खुदसे अलग करके

कसम से..
रेखाचित्र व कविता -रवींद्र भारद्वाज

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

हमे मिलना ही था !


हम मुद्दत बाद मिले 
बस इसलिए कि
हमे मिलना ही था 

कही ना कही प्यार 
तुम्हारे ह्दय में भी था 
मेरे लिए 
कम से कम एक कटोरे दूध जितना 

लाओ पिला दो 
इश्क 
उतना ही 
कि होश ना रहे हमे 
कम से कम इक उम्र तक.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 14 नवंबर 2018

Stop !


Stop !
I wanna ask something..
Something like favour of you
Please show mercy at me
Please

Don't go ahead
Leaving me alone
Because I love you.. very much
And without your attention
I can't live peacefully

So..
Stop !

Please hug me
I am very lonely
You know this
Betterly..
Sketch and Poetry - Ravindra Bhardvaj 

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

वक्त-वक्त की बात है..


वक्त-वक्त की बात है..

कभी तुम अपने थे
अभी पराये हो

संगमरमर का बदन था
चेहरा गुलमोहर सा लाल था

लचक कमर की
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी थी.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


सोमवार, 12 नवंबर 2018

कि..


मै रोयी
कि बेपरवाह हू 
उससे 

मै खोयी 
हौले-हौले 
उसे 
कि उसे यकीन न आये 
(कुछ खोने का)

इल्म ना पाये इसका कि
मै जुदा होना चाहती हू 

कि..
ये इश्क बड़ा ही बेदर्दी से पेश आता है मुझसे.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 11 नवंबर 2018

तुम मिलते नही तो


हम तन्हाईओ में
तुझे ढूढ़ते रहे

हम रुशवाईयों में
तुझे पुकारते रहे


तुम मिलते नही तो
अफसानां ना बना होता
कोई

कोई दर्द भी न होता
इतना बेदर्द.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज 

शनिवार, 10 नवंबर 2018

बीत गया दीपो का पर्व


गूगल से साभार
हर्षो-उल्लास का पर्व
दीपावली
बीत गयी

बीत गया
दीपो का पर्व
कुछ संदेश देकर
यू कि
अंधियारा अब ना रखना
अपने ह्दय में

मित्रवत व्यवहार करना
हरकिसी से

जीवन में ख़ुशी के रंग भरो
रंगोली के जैसे
कि देखते ही तुम्हे
हर कोई चहकके बोले
तू तो बड़ा मनभावन है रे !
Art by Ravindra Bhardvaj

2.
याद रख 
अच्छाई का वास होगा हर जगह
और बुराई का नाश होगा हर तरफ से, हर तरह से

मर्यादा पुरुषोत्तम राम जो
बैठे है तुम्हरे नईयां में
ओ निषाद भईयां !
-रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

वो दिन थे !

शायद
वो दिन थे बसंत के
चाँदनी रात की
और हल्की-हल्की बरसात की, दिन थे वो !

उनदिनों
कुछ कर गुजरना था
मर-मिटना था
गर तुम नही मिलती तो..

खैर
मिली भी तो
मुद्दत बाद

अबतक
मेरा जोश और जुनून मर चुका था

इस वजह से
तुम्हे पाने की चाहत नही मरी कि
तुम मुझसे प्यार नही करती
बल्कि इस वजह से कि
मै ही केवल तुमसे प्यार करने लगा था..

काश ! तुम करी होती मुझसे प्यार
और प्यार का इकरार..

तो बहुत कुछ कहने, सुनने और करने में आसानी होती
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


मंगलवार, 6 नवंबर 2018

गरीब का धनतेरस और दीवाली


गूगल से साभार 


धनतेरस

और दीवाली
मनायां जायेंगा
तुम्हारे यहाँ..

धनतेरस को छोड़िये
दीवाली हो ही जायेंगा 
(जिसदिन आयेगा)
हमारे यहाँ.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 5 नवंबर 2018

नदी थी वो


नदी थी वो
मुझमे से उदगम प्रेम
ले चली थी

बही थी
साथ-साथ
कुछ दूर

कुछ दूर बाद ही
वो मुड़ गयी

तोड़कर प्रेम की जलधारा।
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज 

शनिवार, 3 नवंबर 2018

मुझे बहुत ही अच्छा लगता है..


सर्दी की धूप
और तुम

दोनों की आग़ोश में रहना
मुझे बहुत अच्छा लगता है..

मुझे बहुत कुछ और भी अच्छा लगता है
जैसे-
तुमसे बातें करना
तुम्हारी तारीफ़े सुनना
तुम्हारे कॉलेज से लौटने का इंतजार करना..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

मुझे बस तेरी फ़िक्र है !


मुझे
बस तेरी फ़िक्र है !
वरना मर-खप गई होती मै कबकी..

तू मेरे बिना कैसे जियेगा..
जान जब मुझमे बसती है तेरी !

तू मेरी जुदाई कैसे सहता होगा
यह सोचते ही..
कपकपाँ जाती है मेरी रुहे...
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

मैं कोई आज से तन्हा थोड़े न हू !


नदी रुठ जाएंगी तो
गति टूट जाएंगी..

मैं कोई आज से तन्हा थोड़े न हू !
तुम छोड़ जाओगे तो
और तन्हा हो जायेगे
बस इतना ही।
रेखाचित्र व कविता - रवींद्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...