रुके थे सरे राह
चलते-चलते
तुम्हारा मेरे पीछे होने का भरम पाले
आखिर तक भरम बना रहा
आखिर
कठोर चट्टान की तरह मेरा विश्वास था तुमपर
अब
उमर बीत गयी
मंजिल निकल गयी
हाथ से
और तुम भी गुजर गये हो
मेरे बहुत पास से
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार