रुके थे सरे राह
चलते-चलते
तुम्हारा मेरे पीछे होने का भरम पाले
आखिर तक भरम बना रहा
आखिर
कठोर चट्टान की तरह मेरा विश्वास था तुमपर
अब
उमर बीत गयी
मंजिल निकल गयी
हाथ से
और तुम भी गुजर गये हो
मेरे बहुत पास से
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बहुत सुन्दर.... भावपूर्ण रचना...।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
अत्यंत आभार..... आदरणीया
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
नई पोस्ट - लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सादर
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