शायद
वो दिन थे बसंत के
चाँदनी रात की
और हल्की-हल्की बरसात की, दिन थे वो !
उनदिनों
कुछ कर गुजरना था
मर-मिटना था
गर तुम नही मिलती तो..
खैर
मिली भी तो
मुद्दत बाद
अबतक
मेरा जोश और जुनून मर चुका था
इस वजह से
तुम्हे पाने की चाहत नही मरी कि
तुम मुझसे प्यार नही करती
बल्कि इस वजह से कि
मै ही केवल तुमसे प्यार करने लगा था..
काश ! तुम करी होती मुझसे प्यार
और प्यार का इकरार..
तो बहुत कुछ कहने, सुनने और करने में आसानी होती
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज