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रविवार, 3 फ़रवरी 2019

दो पंछी

दो पंछी 
एक-दुसरे के हमदम 
एक-दुसरे के साथी !

बिजली की नंगी तार पर 
बैठे हैं वो दो पंछी 
जो लगभग मूर्तिवत हैं 

सुबह, स्वर्ण-गर्भ से जन्मी शिशू हैं 
सूर्य, गेंदा का फूल 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...