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बुधवार, 12 सितंबर 2018

तुम्हारी यादो के गिरफ्त मे रहता हू।

Art by Ravindra Bhardvaj
हर मौसम मे
एक कसक सी ऊठती है

हरपल
एक खोज सी रहती है..

हर दरख्त पर
पत्ते नही रहते हमेशा

और हर नदी मे
नांव नही खाती अब हिचकौले..

फिरभी
हरदिन तुम्हारी यादो के गिरफ्त मे रहता हू।
कविता व रेखाचित्र - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...