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बुधवार, 21 नवंबर 2018

वो मसीहा था


जो तुम्हे छोड़ दिया 
वो मसीहा था 

जो तुम्हारे साथ है 
वो नसीब है 

जो तुम्हारे करीब है 
वो गरीब है 

जो तुम्हारे साथ-साथ चलता है 
वो एहसास है 

वो कुछ नही है 
जिसे बहुत कुछ मान लिया है तुमने.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...