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शुक्रवार, 10 मई 2019

अगर तुम बुलायी ना होती

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हम रोक लेते खुदको 
अगर तुम बुलायी ना होती 

बात जेहन में दबाके रख लेता 
अगर मुझे देख-देखकर मुस्कुरायी ना होती 

छुट गया जो कोर आंचल का 
काश ! उसके नीचे पलभर को सही सुलायी होती 

नदी आड़ी-तिरछी बहती चली गयी 
काश ! एकबार प्यास बुझा के जाती 

हम शराब के नशे में नही होते 
अगर बेवफ़ाई का पाठ तुमने ना पढ़ाई होती 

गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

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