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रविवार, 2 दिसंबर 2018

तुम चुप थी..

तूने बेपरवाह रखा 
मुझे 
अपने गम से 

मेरी आँखे नम रही 
क्यूंकि तुम नही मिली कभी फुर्सत निकालके 

बड़ी आरज़ू थी कि
मिलते ही 
बताओगी
ना मिलने का सबब 

पर 
तुम चुप थी
ऐसे 
जैसे आकाश 

तुम पाषाण बन चुकी थी  
न जाने कौन तुम्हारी शोख-चंचलता को 
नष्ट कर दिया था 
हर सिरे से.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...